इस कहानी का कोई भी पात्र काल्पनिक नहीं है ।
Brilliant Atoms
बात बहुत पुरानी नहीं है, यही कोई २० साल हुए होंगे, लेकिन आज भी लगता है जैसे कल की ही बात हो। Biology के अध्यापक ने अचानक ही surpirse टेस्ट का ऐलान कर दिया। कक्षा के बाक़ी लोगों का तो पता नहीं लेकिन उन तीनो के चेहरों की परेशानियाँ साफ़ साफ़ नज़र आ रही थीं। बेचारे सर्प्राइज़ टेस्ट से डर गए होंगे ? नहीं ऐसा नहीं था, टेस्ट से डर उनको लगता है जिन्हें पास होने की चिंता होती है, उन्हें अपनी औक़ात अच्छे से पता थी, दसवीं कक्षा तक हिंदी माध्यम से पढ़ने के बाद अंग्रेज़ी में ११ कक्षा की पढ़ाई जो कर रहे थे, सब कुछ ऊपर से निकल रहा रहा था तो टेस्ट से क्या फ़र्क़ पड़ना था।
“टेस्ट से डर नहीं लगता साहिब, ज़मीन पर बैठने से लगता है।” ऐसे ही कुछ थी तीनों कि मनोदशा।
अब सर्प्राइज़ टेस्ट से ज़मीन पर बैठने का क्या सम्बंध? ग़लती करने पर मुर्ग़ा बनने की बात तो बहुत सुनी होगी लेकिन यहाँ माजरा कुछ अलग था।
देश की राजधानी दिल्ली का सरकारी स्कूल, सीटें कम, बच्चे ज़्यादा। ज़्यादातर बच्चे स्कूल आते नहीं थे तो सीटें पूरी हो जातीं थीं, लेकिन परीक्षा हमेशा खुले मैदान में होती थी वो भी ज़मीन पर बैठ कर क्यूँकि इतने सारे ब्च्चों के बैठने के लिए दरी की व्यवस्था नहीं थी और क्लास के अंदर नक़ल करने की पूरी संभावना होती थी। शायद उन अध्यापकाओं को पता नहीं था की जब कुछ समझ ही नहीं आता तो नक़ल क्या ख़ाक करेंगे।
ख़ैर मुद्दे पर आते हैं। ज़मीन पर बैठने मैं कोई परेशानी नहीं थी, परेशानी थी निली पैट और सफ़ेद शर्ट। अगर आपको मेरी बात ग़लत लग रही हो तो आप ही बतायिये की निली पैंट पहन कर आप ज़मीन पर बैठ तो जाएँगे लेकिन जब उठेंगे तो क्या होगा? चाइना का नक़्शा आपके पिछवारे पर छपा होगा कि नहीं? और पेंट गंदी होने का मतलब है घर वापिस जा कर धुलाई करवानी होगी, पचास सवालों के जवाब देने होंगे, कहाँ गंदी हुई? कैसे गंदी हुई? कितनी बार समझाया है ध्यान रखा करो।
आप सोच रहें होंगे कि ये कौन से बड़ी बात है? कपड़े गंदे होते हैं तो फिर धुलतें ही हैं। लेकिन जब आपके पास पेंट एक ही हो तो धुलने के बाद सुखना भी ज़रूरी होता है। हो गए ना आप भावुक, बिचारे एक ही स्कूल ड्रेस से कैसे काम चलाते होंगे? रुकिए! अभी भावुक होने के कोई ज़रूरत नहीं हैं आगे और भी बेहतर मौक़े मिलेंगे आपको अफ़सोस जताने के लिए इन बिचारों पर। फ़िलहाल आपको वापिस लिए चलता हूँ इग्ज़ैमिनेशन ग्राउंड क्यूँकि परीक्षा खुले मैदान में हो रही है।
अगर आपने कभी १५ ऑगस्ट का प्रधानमंत्री का भाषण TV पर देखा होगा तो आपको समझ आ जाएगा की बच्चे किस तरह लाइन बना कर बैठे होते हैं। कुछ वैसा ही दृश्य उस परीक्षा ग्राउंड का भी था। जैसे की बायआलॉजी के अध्यापक को पता था की अगर ये तीनो निक्कामे साथ साथ बैठे तो पक्का नक़ल करेंगे, इसलिए पूरी प्लानिंग के साथ तीनो को अलग अलग लाइन मैं बिठाया गया। परीक्षा पत्र बाँटा गया, तीनो ने एक दूसरे के तरफ़ देख इशारे से पूछा क्या सीन है? तीनो की मूंडी ना में हिली और लग गए बिचारे आजु बाजु देख अपने अपने काम मैं।
अंधो मैं कान्हा राजा तो अपने सुना ही होगा, लेकिन यहाँ तीन तीन कान्हा राजा थे JAY, SURU और DEV और SURU उनका मुखिया । मौक़ा मिलते हीं देव ने सुरु को आवाज़ लगायी।
अबे सातवें का आन्सर क्या है? सातवें क्वेस्चन मैं किसी साययंटिस्ट का नाम पूछा गया था।
सुरु ने जवाब दिया “Beadle And Tatum”, लेकिन दूर दूर बैठने की वजह से कुछ साफ़ सुनाई नहीं दिया और देव ने अपनी कापी मैं जवाब लिखा “Brilliant Atom“।
देव ने फिर से आवाज़ लगायी दशवें का जवाब क्या लिखूँ? सुरु ने जवाब दिया “Chameleon” लेकिन दूरी ने फिर से साथ नहीं दिया और देव ने बड़े ही सफ़ाई से जवाब लिखा “Champion”
अब दोष किसे देते?
हिंदी माध्यम से अंग्रेज़ी मैं आने को?
अध्यापक को जिसने तीनो को दूर दूर अलग अलग लाइन मैं बिठाया?
उस हवा को जो मैदान कि मिट्टी उड़ा उड़ा कर आन्सर शीट पर डाल रही थी?
उनके इस निर्णय को, की साइयन्स सबजेक्ट पढ़ना है जीवन मैं तरक़्क़ी के लिए?
या फिर उनका ध्यान निली पैंट के गंदे होने पर ज़्यादा और क्वेस्चन पेपर पर काम था?
२ दिन बाद ही आन्सर शीट क्लास रूम में साझा की गयी और सबको पता चल गया की ब्रिल्यंट ऐटम और चैम्पीयन कौन है।
दोस्तों आज के लिए बस इतना हीं।
आज तीनो ही मित्र अपने अपने फ़ील्ड मैं चैम्पीयन हैं लेकिन उनके चैम्पीयन बनने का सफ़र कोई आसान नहीं था।