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Tuesday, September 11, 2018

छोटी चादर
बचपन में ही सिखा दिया गया था कि जितनी चादर हो उतना ही पैर फैलाना चाहिएतरह तरह के उदाहरण दिए गए और दिमाग ने भी मान लिया कि यही सच है।
लेकिन प्रकृति तो ऐसी नही है सब कुछ उल्टाकुछ भी स्थिर नहीसब चलायमान। वृक्ष अपनी जड़ें फैलाते हैंनदियाँ अपना रास्ता बनाती हैपर्वत भी निष्क्रीय नही हैपक्षी भी मौसम के अनुसार जगह बदलते रहते हैचींटियों को कभी रुके हुए नही देखा। मतलब सबका विस्तार हो रहा है। सब आगे बढ़ रहे हैंतो फिर चादर क्यों नही
जब ठहराव सच नही है तो क्यों रोका गया हमेंक्यों नही कहा गया कि ये रही तुम्हारी चादर और जैसे जैसे पैर बढ़े अपनी चादर भी बुनते रहनामेहनत करोआगे बढ़ोइस चादर को इतना बड़ा करो कि तुम्हारे जैसे हजारों को इसमें पनाह मिल पाएं।
इस संकुचित सोचसंकीर्ण विचार और ठहराव ने हमारे समाज को और पीछे धकेल दिया। मैं भी मानता हूँ कि जो मिला उसमे खुश रहना चाहिएसंतुष्टि अतिआवश्यक हैलेकिन अपने पैर फैलाने में भी कोई नुकसान तो नही।
अगर सब अपने अपने हिस्से की चादर खुद बुनते तो आज समाज ऐसा नही होतादेश ऐसा नही होताशायद गरीबी भी कम होतीनेता भी पढ़े लिखे होते।
कोई आरक्षण की मांग नही करता क्योंकि समाज समर्थ होता। सिर्फ एक मानसिक वैचारिक बदलाव कितना कुछ बदल सकता था।
कोशिश है की आने वाली पीढ़ी की सोच बदलेआप भी कोशिश करिये।
सोच बदलेगी तभी हम सफल हो पाएंगे।

Monday, September 10, 2018

I have few but great friends :)


Like many of you I love to interact face to face looking into eyes, I am not a phone or chat guy. I always had complains for not picking up there calls, I never did that intentionally, just happened. As a result, I have few friends.
  • Friends with whom I can have Healthy Discussion
  • Friends who are Honest to me
  • Friends who can read my face
  • Friends who Encourage me all the time
  • Friends who feel great with your Success
  • Friends who are there 24/7
  • Friends who never send Good Morning and Good Night greetings

Great friends never let you feel alone